अकेलेपन की ताकत | Gautam Buddha Story In Hindi

 अकेलेपन की ताकत || Buddhist Story On The Power Of Solitude 


Buddhist Story On The Power Of Solitude 

एक गुरु के पास एक नया शिष्य आया युवा शिष्य के मन में बहुत सारे सवाल थे जो वह गुरु से पूछना चाहता था एक दिन वह गुरु के पास आया और उनसे कहा गुरु जी मैंने देखा है कि शुरू में लोग एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं फिर धीरे-धीरे उनके बीच मतभेद होने लगते हैं और मतभेद झगड़ों में बदल जाते हैं फिर वे एक दूसरे को बुरा भला कहने लगते हैं और अंत में रिश्ता टूट जाता है और प्यार नफरत में बदल जाता है गुरुजी ऐसा क्यों होता है कि जहां कभी प्यार था अब वहां नफरत ने उसकी जगह ले ली है गुरु ने कहा आज मैं एक किसान से मिलने उसके घर जा रहा हूं।

 तुम भी मेरे साथ चलो तुम्हें इस सवाल का जवाब वहीं मिलेगा कुछ समय बाद गुरु अपने शिष्य के साथ पास के एक गांव पहुंचे गांव के बीच पहुंचकर उन्होंने वहां बने एक घर के दरवाजे पर दस्तक दी अंदर से एक व्यक्ति बाहर आया उसने गुरु को प्रणाम किया और कहा बता बए गुरु जी मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं गुरु ने उस व्यक्ति से पूछा क्या तुम्हारा अपनी पत्नी के साथ जो विवाद चल रहा था वह समाप्त हो गया क्या अब तुम खुश हो व्यक्ति ने कहा गुरुजी उस महिला से शादी करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी वह बिल्कुल अच्छी नहीं है।

 वह मेरी और मेरे परिवार की देखभाल नहीं करती वह हमेशा अभिमान से बात करती है वह हमेशा गुस्से में रहती है उसने आज तक मुझे कभी नहीं समझा वह मेरी कोई बात नहीं सुनती वह बिल्कुल अच्छी नहीं है मैं सोचता हूं कि मेरे भाग्य में कैसी पत्नी लिखी है अब वह मुझे छोड़कर अपने मायके चली गई है और मैं भी यही चाहता हूं कि वह वहीं रहे और कभी मेरी जिंदगी में वापस ना आए गुरु ने अपने शिष्य से कहा देखो यह मनुष्य की प्रकृति है हर इंसान के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं लेकिन इंसान केवल बुराई को याद रखता है।

 अच्छाई को नहीं और जब वह किसी की बुराई करना शुरू कर देता है तो शुरुआत से अंत तक उसने केवल बुराई देखी है और केवल बुराई ही बोलता है और जब वह सब बुरा अपने मन में बसा लेता है तो वह उम्मीद करता है कि उसके जीवन में सब अच्छा हो बुराई से भला जीवन में अच्छाई कैसे आ सकती है जीवन में अच्छाई लाने के लिए सुख और शांति लाने के लिए हमें अच्छाई को देखना होगा लेकिन कोई ऐसा नहीं करता क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति के अहंकार को चोट पहुंचती है और वह अपने अहंकार के सिंहासन से नीचे नहीं गिरना चाहता गुरु के मुख से यह सब सुनकर व्यक्ति ने कहा गुरु जी आप क्या कह रहे हैं।

 अगर कोई बुरा है तो वह मेरे अंदर भी बुराई देखेगा अगर मेरी पत्नी बुरी है तो मैं उसमें केवल बुराई ही देखूंगा आज तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया जो मुझे खुशी दे सके गुरु ने पूछा क्या तुमने आज तक कोई ऐसा काम किया है जो तुम्हारी पत्नी को खुशी दे सके व्यक्ति ने कहा उसने मुझे कभी ऐसा मौका ही नहीं दिया कि मैं उसके लिए कुछ कर सकूं गुरु ने कहा कुछ समय के लिए इन बुरी बातों को छोड़ दो और अपनी पत्नी की कमियों को भूल जाओ उसकी कोई एक अच्छाई याद करो और मुझे बताओ व्यक्ति ने कहा एक बार मेरी मां बहुत बीमार पड़ गई थी और उसने उनकी बहुत सेवा की थी उन दिनों उसे दिन और रात की भी परवाह नहीं थी।

 गुरु ने कहा इसके अलावा क्या तुम्हें अपनी पत्नी की कोई और अच्छा याद है व्यक्ति ने कहा वह हमेशा घर में सबसे पहले जागती थी और वह मेरे और माता-पिता के भोजन का बहुत ध्यान रखती थी एक बार जब मैं बहुत बीमार हो गया था वह पूरी रात जागक मुझे दवाइयां देती थी वह बहुत मेहनती थी अगर उसे कोई समस्या होती तो वह मुझे नहीं बताती थी वह हमेशा मुझे खुश रखने की कोशिश करती थी यह सब कहते हुए व्यक्ति की आंखों में आंसू आ गए और उसने कहा गुरुजी मुझे क्या हो गया था मैं मानता हूं कि मेरी पत्नी में बहुत कमियां है।

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 लेकिन वह बुरी नहीं है मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं ऐसा क्यों नहीं कर सका गुरु मुस्कुराए और कहा जब हम किसी में बुराई देखते हैं तो बुराई बुराई को आकर्षित करती है और फिर सब कुछ हमारे जीवन में भी बुरा होने लगता है लेकिन जब हम किसी में अच्छाई देखते हैं तो अच्छाई अच्छाई को आकर्षित करती है और हमारे साथ भी सब कुछ अच्छा होने लगता है व्यक्ति ने बात समझी और और गुरु से विदा लेकर अपनी पत्नी को वापस लाने चल पड़ा प्यार नफरत में क्यों बदल जाता है।

 यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिल में प्यार रखना चाहते हैं या नफरत मैंने आपकी बात को अच्छी तरह से समझ लिया है क्या आप इस सवाल का भी जवाब देंगे शिष्य ने पूछा सबसे कठिन कार्य क्या है गुरु ने कहा इस संसार में सबसे कठिन कार्य है एकांत में रहना क्या तुम इस कार्य को इतना आसान समझते हो कि तुम 30 दि दिन तक एकांत में रह सकते हो तुम्हें 30 दिन तक कहीं नहीं जाना है एक गुफा में रहना है तुम्हारा बाहर किसी से संपर्क नहीं होगा तुम गुफा के अंदर किसी भी प्रकार के काम में व्यस्त नहीं रहोगे तुम केवल शांत और मौन रहोगे क्या तुम इसे कर पाओगे लेकिन गुरु जी एकांत में रहने से क्या होगा इससे क्या प्राप्त होगा गुरु ने कहा तुम्हें यह जानने को मिलेगा कि तुम्हें क्या प्राप्त होगा लेकिन सवाल यह है कि क्या तुम इस आसान कार्य को कर पाओगे।

 शिष्य ने सहमति जताई और गुरु उसे गुफा में ले गए और वहां 30 दिन के लिए उसके खाने पीने की व्यवस्था कर दी और कहा कि गुफा का दरवाजा खुला है अगर तुम इसे नहीं कर पाते तो बाहर आ सकते हो शिष्य गुफा में प्रवेश कर गया पहले दिन उसने अपना समय बहुत आसानी से बिताया दूसरे दिन उसे अजीब सा लगने लगा उसका मन बार-बार बाहर की ओर भाग रहा था उसे घुटन महसूस हो रही थी वह इधर-उधर टहलने लगा और डर ने लगा लेकिन किसी तरह उसने दूसरा दिन भी काट लिया लेकिन तीसरे दिन वह बहुत बेचैन हो गया उसके मन में विचार आने लगे कि वह कितना बेकार का काम कर रहा है।

 कौन जानता है कि बाहर क्या-क्या हो रहा होगा और मैं यहां गुफा में बैठा हूं वह तीसरे दिन गुफा से बाहर आ गया और गुरु के पास पहुंचा गुरु ने शिष्य को देखकर मुस्कुराते हुए कहा मैं तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था तय हुआ था कि तुम 30 दिन तक एकांत में रहोगे लेकिन तुम केवल तीन दिन में ही बाहर आ गए शिष्य ने कहा मुझे नहीं पता गुरुजी लेकिन मुझे अंदर से बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी बार-बार बाहर जाने का मन कर रहा था इन तीन दिनों में मैं एकांत भी नहीं पा सका कई विचार भावनाएं कल्पनाएं और कई अन्य चीजें मेरे मन में चल रही थी कोई मुझे जबरदस्ती बाहर खींच रहा था गुरु ने कहा वह कोई और नहीं बल्कि तुम्हारा मन था मन को एकांत पसंद नहीं है।

 यह हमेशा किसी और की तलाश में रहता है लेकिन जब इसे कोई और नहीं मिलता कोई और दिखाई नहीं देता तो यह बेचैन हो जाता है क्योंकि इसका अस्तित्व दूसरों के कारण है अगर और कोई नहीं है तो मन की शक्ति खत्म हो जाएगी और वह तुम्हारे ऊपर से अपना नियंत्रण खोने लगेगा इसीलिए वह तुम्हें जितनी जल्दी हो सके बाहर ले जाना चाहता था और तुम बाहर आ गए शिष्य ने कहा गुरु जी आप बिल्कुल सही थे कि एकांत में रहना दुनिया में एक बहुत कठिन कार्य है गुरु ने कहा तुमने नहीं पूछा कि इस संसार में सबसे आसान कार्य क्या है शिष्य ने कहा गुरु जी यह सवाल भी मेरे मन में था लेकिन मैं पूछ नहीं सका गुरु ने कहा यदि इस संसार में सबसे कठिन कार्य एकांत में रहना है तो इस संसार में सबसे आसान कार्य भी एकांत में रहना है।

 शिष्य ने कहा गुरुजी आप कैसी विरोधाभासी बातें कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा गुरु ने कहा एकांत हमारी प्रकृति है हम बस अपनी प्रकृति से दूर हो गए हैं और मन के बनाए इस जाल में फंसकर हम हमेशा किसी और को खोजते रहते हैं और अपनी एकांत को खो देते हैं एकांत के लिए किसी साधन की आवश्यकता नहीं होती बल्कि यह हमारी प्राकृतिक अवस्था है शिष्य ने कहा अगर एकांत हमारी प्रकृति है और यह इतना आसान है तो फिर मैं केवल तीन दिनों में ही गुफा से क्यों बाहर आ गया मुझे वहां रहना इतना कठिन क्यों लग रहा था।

 वहां मुझे घुटन क्यों हो रही थी मैं इतना बेचैन क्यों हो रहा था गुरु ने कहा जब तक एकांत तुम्हारे भीतर से नहीं उपज तब तक भले ही तुम एक गुफा में बंद हो जाओ तुम वहां अकेले नहीं रहोगे वहां भी तुम अपने मन के अंदर भीड़ इकट्ठा कर लोगे और वह भीड़ तुम्हारे विचारों की तुम्हारी भावनाओं की होगी इसके बाद गुरु शिष्य को एक नदी के पास ले गए और बोले अगर तुम इस नदी पर पर बांध बनाना चाहो तो तुम्हें कितना समय लगेगा क्या तुम यह काम आज ही अकेले कर सकते हो शिष्य ने कहा नहीं गुरुजी यह कैसे संभव हो सकता है कि एक दिन में यह काम हो जाए यह तो दो दिन तीन दिन या चार दिन में भी नहीं होगा इसमें बहुत समय लगेगा पहले योजना बनानी होगी फिर धीरे-धीरे बांध की तैयारी करनी होगी जो भी समस्याएं आएंगी उन्हें देखना और हल करना होगा और धीरे-धीरे समय के साथ बांध तैयार होगा।

 गुरु ने कहा तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है और इसी प्रकार मन की नदी पर बांध भी धीरे-धीरे बनाया जाता है एक दो तीन या चार दिन में नहीं यह समय के साथ धीरे-धीरे होता है शिष्य ने कहा गुरु जी मैं बहुत अच्छी तरह समझ गया हूं कि आप मुझे क्या समझाना चाह रहे हैं मैं भी धीरे-धीरे अपने मन की नदी पर बांध बांधने की तैयारी करूंगा उस दिन से शिष्य ने अपने साधना पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया वह धीरे-धीरे अपने मन के विरुद्ध खड़ा होने लगा उसने छोटे-छोटे संकल्प लेना शुरू किया उसने अपने कई संकल्प पूरे किए और कई संकल्प बीच में ही टूट गए लेकिन हर बार वह और भी मजबूत हो गया हर संकल्प की पूर्ति के साथ उसका अपने आप पर नियंत्रण बढ़ता गया समय के साथ उसके छोटे संकल्प बड़े संकल्पों में बदलने लगे फिर एक दिन उसने एक बड़ा संकल्प लिया और गुफा के अंदर चला गया वह 30 दिन तक गुफा से बाहर नहीं आया जब 30 दिन बीत गए गुरु अपने शिष्य को देखने के लिए चिंतित हो गए और गुफा के अंदर गए उन्होंने देखा कि उनका शिष्य एक बहुत शांत स्थान पर ध्यान मग्न बैठा हुआ है।

 जैसे ही उसने गुरु को देखा वह खड़ा हो गया और उन्हें प्रणाम किया और कहा गुरु जी आप बिल्कुल सही थे एकांत में रहना वास्तव में एक बहुत आसान कार्य है एकांत हमारी ति है और यही हमारा स्वभाव है इसके लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है यह तो बस हम इसे देख नहीं पाते इसके बाद दोनों शिष्य और गुरु गुफा से बाहर आ गए अब आप सोच रहे होंगे कि इस एकांत की कहानी का क्या अर्थ है वास्तव में एकांत वह चीज है जो हमें सत्य दिखाती है जो हमें शांति दिखाती है हम सभी अपने जीवन में बहुत छोटी-छोटी चीजों में उलझे हुए हैं।

Gautam Buddha 

 जो वास्तव में इतनी तुच्छ हैं कि उनके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन हमने उन्हें इतना बड़ा बना दिया है कि उनका हमारे जीवन में बहुत महत्व हो गया है और हमारा जीवन उन्हीं के इर्दगिर्द घूमता रहता है और हम वहीं भटकते रहते हैं इस संसार में कोई भी शेष नहीं रहा है चाहे वह कितना भी बड़ा व्यक्ति हो चाहे उसमें कितना भी अहंकार हो सभी मिट्टी में मिल गए हैं चाहे वह राजा हो या भिखारी शक्तिशाली हो या कमजोर संत हो या या साधु किसी का भी अहंकार नहीं बचा आज हम छोटी-छोटी बातों के लिए इतना लड़ते हैं इन सब चीजों से तुम क्या करोगे शरीर को मिट्टी में बदलने में कुछ ही क्षण लगते हैं और हम ऐसे लड़ रहे हैं जैसे हम यहां हमेशा के लिए रहने वाले हैं।

 हमें कुछ समय मिला है यह बहुत कीमती है इसका उपयोग करो कुछ सीखो जीवन को जीने के लिए कुछ जानो सब कुछ जानने के बाद भी हम कुछ नहीं जानते यही हमारी विडंबना है और यही हमारी अचेत है और इस अचेत से बाहर आने का नाम ही जागरूकता है और चेतना है और यहां तक कि आत्मज्ञान भी गुरु ने शिष्य की ओर देखा और मुस्कुराए याद रखो जीवन में सबसे बड़ा संघर्ष स्वयं के साथ है जब तुम अपने मन पर विजय पा लोगे तभी सच्चा आनंद शांति और मुक्ति प्राप्त होगी शिष्य ने गुरु के चरणों में प्रणाम किया और कहा गुरु जी आपने मेरी आंखें खोल दी मैं इस सत्य को अपने जीवन में उतारूंगा मैं मन को साधने की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहूंगा और इस जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने का प्रयास करूंगा गुरु ने आशीर्वाद देते हुए कहा जाओ तुम अपने मार्ग पर बढ़ो याद रखो सत्य को पाने का मार्ग सरल नहीं है परंतु यह सबसे सुंदर और महत्त्वपूर्ण यात्रा है।

 उस दिन के बाद शिष्य ने अपने साधना को और भी गहन किया धीरे-धीरे उसने अपने मन पर नियंत्रण पाना शुरू किया और वह अपने भीतर की शांति को महसूस करने लगा वह जान गया था कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं बल्कि अपने भीतर के शांति और संतुलन में है।

 समय के साथ वह शिष्य स्वयं एक महान गुरु बन गया जो दूसरों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता उसने सिखाया कि एकांत कोई बाहरी स्थिति नहीं है बल्कि एक आंतरिक अवस्था है और जब हम इस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं तब हम सच्चे सुख और शांति को पा सकते हैं और इस प्रकार गुरु और शिष्य की यह कथा समाप्त होती है।

 लेकिन यह एक नई यात्रा की शुरुआत है आत्मज्ञान की आत्म साक्षात्कार की और सच्चे अर्थों में जीवन जीने की उम्मीद करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी तो इस वीडियो को लाइक करके सब्सक्राइब बटन जरूर दबा दें मिलते हैं किसी अन्य रोचक कहानी के साथ धन्यवाद ।

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